लोहड़ी पर्व (lohari festviwal) मुख्यतः पंजाबी समुदाय के लोग बड़ी धूम धाम से मनाते हैं | भारत में मुख्य रूप से पंजाब राज्य के लोग बड़े उत्साह से मनाते हैं | आस पास के लोग पूजन की सामग्री एकत्रित करते हैं और शाम को फिर पूजन करके आग जलाकर लोहड़ी का उत्सव मनाया जाता है |
कैसे मनाते हैं लोहड़ी :
इस शुभ दिन पर लोग शाम को आस पास स्थित खुले मैदान में सुखी लकड़ियां, गोबर के उपले को एक जगह पर इकठ्ठा करते हैं | समुह मे पूजन किया जाता है फिर उसके बाद अग्नि को तिल, रेवड़ी, गुड आदि अर्पित किया जाता है जिसे बाद मे प्रसाद के रूप में सभी लोगों मे बाॅंटा जाता है | इस दिन सभी लोग पारंपरिक कपड़े पहने हुए होते हैं| लोग लोहड़ी के चारो ओर इकठ्ठा होकर पारम्परिक लोकगीत गाते हैं और भागडा करते हैं |
इसका का महत्व :
लोहड़ी और मकर संक्रांति का पर्व आपस में जुड़े हुए हैं | लोहड़ी सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है |लोहड़ी के दिन शाम को पूजा करने के बाद लोहड़ी जलाई जाती है और अगले दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान करने के बाद उस आग से हाथ को सेकते हुए घर की ओर जाते हैं, इस प्रकार लोहड़ी के दिन जो आग जलाई जाती है उसको सूर्य के उत्तरायण होने के बाद का पहला विशाल और सार्वजनिक यज्ञ बोलते हैं |
इस उत्सव पर पंजाब के पारम्परिक लोकगीतों को ढोल और नगाडो के साथ उत्साह पूर्वक गया जाता है |
lohari festviwal
इससे जुड़ी हुई लोककथाए :
इससे अनेक लोककथाए जुड़ी हुई है, लेकिन इनमे से सबसे प्रसिद्ध लोककथा दुल्ला भट्टी की है, दुल्ला पंजाब का वीर और साहसी योद्धा था जिसने कई गरीब ल़डकियों की रक्षा की ओर उनकी शादी करवाईं, इसलिये लोग उसके सम्मान मे लोकगीत गाते हैं |
लोहड़ी को जलाते वक़्त उसमें मूँगफली, तिल रेवड़ी आदि अर्पित करते हैं जिसे बाद में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है | आजकल ड्रायफूट्स देने का प्रचलन भी बढ़ता जा रहा है | इसमे सभी लोग अपने से बड़े लोगों के चरण स्पर्श करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं |
निष्कर्ष :
लोहड़ी केवल एक फसल पर्व ही नहीं अपितु य़ह एक समाज मे खुशिया बांटने का भी पर्व है | य़ह हमे हमारी संस्कृति और पहले की परंपराओं को जीवित रखने की भी प्रेरणा देता है