महाकुंभ 2025 :पौष मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि (13 जनवरी) से महाकुंभ मेले की शुरुआत होगी | इस बार य़ह प्रयागराज मे तीनों पवित्र नदियों के संगम मनाया जाएगा | जिसमें पूरे देश ही नहीं अपितु पूरे विश्व से लोग स्नान करने आयेगे | इस बार प्रयागराज मे होने वाला महाकुंभ 144 वर्षो के बाद लगने वाला कुम्भ मेला है यूपी सरकार ने और स्थानीय प्रशासन ने इसे भव्य और दिव्य बनाने के लिए स्पेशल तैयारियां की हैं |
MahaKumbh 2025 :
कुम्भ मेला भारत में आयोजित होंने वाला विशाल धार्मिक मेला है जिसमें करोड़ों श्रद्धालु प्रत्येक 12 साल मे चारो पवित्र जगह मे से एक जगह पर एकत्रित होते हैं और नदी में स्नान करने है |
पहले कुम्भ मेले का इतिहास :
कुम्भ की उत्पत्ति और इतिहास पुराने ग्रंथों और पौराणिक कथाओं मे पढ़ने को मिलता है कुम्भ मेले का इतिहास अमृत मंथन की कथा के साथ जुड़ा हुआ है अमृत मंथन के समय अमृत के कलश को लेकर देवताओं और असुरों के मध्य युद्ध हुआ उसमें कुछ बूंदे पृथ्वी के चार जगहों पर गिरी जो कि प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक है | इन जगहों पर गिरे अमृत के कारण ये जगह पवित्र जगह बन गयी और यहाँ कुम्भ मेले का आयोजन किया जाने लगा | कुम्भ मेले के ऐतिहासिक प्रमाण हर्षवर्धन के शासनकाल (7 वी शताब्दी) से मिलता है |
आजादी के बाद भारत मे पहला कुम्भ मेला 1954 मे प्रयागराज में आयोजित हुआ था जिसमें लाखो करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आए थे |
कब से कब तक रहेगा :
इस साल 2025 मे प्रयागराज मे महाकुंभ मेले का आयोजन हो रहा है जिसकी शुरुआत 13 जनवरी से बड़ी धूमधाम से होगी और महाकुंभ मेले का समापन 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन होगा | महाकुंभ मेला 45 दिनों तक चलता है | इसमे कई प्रदर्शनी स्थल लगाए जाते हैं जिसमें वेद, चरक संहिता, पुराण, गीता, व प्राचीन ज्योतिष शास्त्रों आदि को लगाया जाता है |
कब कब होगे शाही स्नान :
इस महाकुंभ मेले मे छह शाही स्नान होगे.
महाकुंभ का पहला शाही स्नान 13 जनवरी को होगा.
दूसरा शाही स्नान 14 जनवरी को होगा.
तीसरा शाही स्नान 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर होगा.
चौथा शाही स्नान 2 फ़रवरी को बसंत पंचमी के दिन होगा.
पाँचवा शाही स्नान 12 फ़रवरी को माघ पूर्णिमा के दिन होगा.
छठा और आखिरी शाही स्नान 26 फ़रवरी को महाशिवरात्रि के दिन होगा |
कुम्भ और महाकुंभ मे अंतर :
कुम्भ मेले का आयोजन ग्रह और नक्षत्र की विशिष्ट स्थिति के आधार पर किया जाता है | कुम्भ मेला तब लगता है जब सूर्य, चंद्रमा और ब्रहस्पति एक विशिष्ट स्थिति मे होते हैं महाकुंभ मेला तब लगता है जब ब्रहस्पति मकर राशि मे और सूर्य और चंद्रमा अन्य शुभ स्थानों पर होते हैं, य़ह सयोग हर 144 साल बाद बनता है हिन्दू ज्योतिष गणनाओं मे 12 और 144 वर्षो के चक्र का महत्व बताया गया है |हर 12 साल बाद कुंभ मेला आयोजित किया जाता है और 12 कुम्भ मेलों के बाद अर्थात 144 साल बाद महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है |
शास्त्रों मे बताया गया है कि हर 144 साल मे अमृत कलश से विशेष ऊर्जा पृथ्वी पर उतरती है जिससे य़ह मेला और अधिक पवित्र हो जाता है, साथ ही यह भी बताया गया है कि महाकुंभ मे स्नान और पूजा करने से कई गुना अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है |